विदुर हिन्दू ग्रन्थ महाभारत के केन्द्रीय पात्रों में से एक व हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री, कौरवो और पांडवो के काका थे। उनका जन्म एक दासी के गर्भ से हुआ था। इसीलिए उन्हें राजा बनने का अधिकार प्राप्त नही था।लेकिन अपने बुद्धि और चातुर्य के कारण विदुर ने प्रधानमंत्री का पद प्राप्त किया। विदुर को धर्मराज का अवतार भी माना जाता है।
परम्परा से विदुर एक नीतिज्ञ के रूप में विख्यात हैं। हिन्दी नीति काव्य पर विदुर के कथनों एवं सिद्धान्तों का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। महाभारत-युद्ध को रोकने के लिए विदुर ने यत्न किये, पर सफल न रहे। विदुर धृतराष्ट्र के मन्त्री किन्तु न्यायप्रियता के कारण पांडवों के हितैषी थे। जीवन के अन्तिम क्षणों में इन्होंने वनवास ग्रहण कर लिया तथा वन में ही इनकी मृत्यु हुई। विदुर समय को देखते हुए अपने नीतियों के माध्यम से धृतराष्ट्र को समझाते रहते थे। इनकी यही रचना 'विदुर नीति' के नाम से जानी जाती हैं।
आइए हम भी इनकी सुंदर नीतियों का अनुसरण करें..
🌼 जो विश्वास का पात्र नहीं है, उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए। पर जो विश्वास के योग्य है, उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है, वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है।
(1)
🌼महात्मा विदुर कहते हैं कि जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को क्लेश हो, धर्म का उल्लंघन करना पड़े, शत्रु के सामने अपना सिर झुकाने की बाध्यता उपस्थित हो,
उसे प्राप्त करने का विचार ही त्याग देना श्रेयस्कर है।
(2)
🌼पर स्त्री का स्पर्श, पर धन का हरण, मित्रों का त्याग रूप यह तीनों दोष क्रमशः काम, लोभ,
और क्रोध से उत्पन्न होते हैं।
(3)
🌼क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए, निश्चय ही क्षमा परम बल है। क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है
और बलवानों का क्षमा भूषण है।
(4)
🌼बुद्धिमान व्यक्ति के प्रति अपराध कर कोई दूर भी चला जाए तो चैन से न बैठे, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति की बाहें लंबी होती है और समय आने पर
वह अपना बदला लेता है।
(6)
🌼काम, क्रोध और लोभ यह तीन प्रकार के नरक यानी दुखों की ओर जाने के मार्ग है। यह तीनों आत्मा का नाश करने वाले हैं, इसलिए इनसे हमेशा दूर रहना चाहिए।
(7)
🌼ईर्ष्या, दूसरों से घृणा करने वाला, असंतुष्ट, क्रोध करने वाला, शंकालु और पराश्रित (दूसरों पर आश्रित रहने वाले) इन छह प्रकार के व्यक्ति सदा दुखी रहते हैं।
(8)
🌼जो पुरुष अच्छे कर्मों और पुरुषों में विश्वास नहीं रखता, गुरुजनों में भी स्वभाव से ही शंकित रहता है। किसी का विश्वास नहीं करता, मित्रों का परित्याग करता है...
वह पुरुष निश्चय ही अधर्मी होता है।
(9)
🌼जोअच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है उसके ये सद्गुण पंडित( सज्जन व्यक्ति) होने के लक्षण हैं।
(10)
🌼जो अपना आदर-सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगा जी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता,
वह ज्ञानी कहलाता है।
(11)
🌼 मूढ़(मुर्ख) चित वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाए ही अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है तथा जो विश्वास करने योग्य नहीं हैं उन पर भी विश्वास कर लेता है।
(12)
🌼जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी इठलाता नहीं, वह पंडित(ज्ञानी) कहलाता है।
(13)
🌼 मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।
(14)
🌼किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।
(15)
🌼 जैसे समुद्र के पार जाने के लिए नाव ही एकमात्र साधन है उसी प्रकार स्वर्ग के लिए सत्य ही एकमात्र सीढ़ी है,
कुछ और नहीं।
(16)
🌼 केवल धर्म ही परम कल्याणकारक है, एकमात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक विद्या ही परम संतोष देने वाली है और एकमात्र अहिंसा ही सुख देने वाली है।
(17)
🌼 ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं- शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला
और निर्धन होने पर भी दान देने वाला।
(18)
🌼काम, क्रोध और लोभ ये आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं,
अत: इन तीनों को त्याग देना चाहिए।
(19)
🌼पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु-मनुष्य को इन पांच की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए।
(20)
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